अंजीर : श्रीनिवास श्रीकांत

दूर-दूर भागता है
अंजीर का पेड़
रातों को दहाड़ता है
अंजीर का पेड़

किसी असफल शाम को

ताली की आवाज घुलने के बाद
माहौल जब बदल जाता है
अनवरत चुप्पी में

पास के शहर में

मासूम बच्चों की हत्याओं से
फैलती है इधर-उधर सनसनी
ओलों से असमय ही
जब टूट जाते
परिन्दों के घोसले
समझदार शराबियों के
लड़खड़ाते पगों
और होश गुम होने के बाद
जब रह रह कर उभरती है
अन्तरतल में
एक जानी-पहचानी सी आवाज़

तभी कहीं पीछे से आकर

झम्म से झांझ बजाकर
दैत्य सा दहाड़ता है
अंजीर का पेड़
नाई की दूकान पर
टंगी सीनरी की तरह
खिड़की में कुछ देर
जब टंग जाता है डूबता सूरज
सिर पर घास के गट्ठर लिये
अपने-अपने घरों को लौटती हैं जब
अधेड़ उम्र की मेहनती किसान औरतें
ढलान पर उगी थोरों के झुरमुट में
घुघती के गीत के साथ-साथ
समय जब लगता है अपना-सा
चरान से लौटने के बाद
मटकन्धों के पिछवाड़े
जब रम्भाती हैं गायें

तब आँखों से ओझल

डूबते हुए जंगल में
गाता है सावनी धुन
अंजीर का पेड़

पास की झील पर

पंख फड़फड़ाती
चुग्गा बीनती है जब
यायावर पक्षियों की पांत
उपन्यास लिखते हुए
लेखक की मेज़ पर
सरक आते हैं जब अभ्रक के पहाड़
घाटी में डाक बंगले के आस-पास
पराग-सेचन में
गुनगुनाती हैं मधुमक्खियाँ
परदेस गया कथा-नायक
जब लौटता है
सालों बाद अपने गाँव
पास के मचान से तब
हिलाता है स्वागत में हाथ
अंजीर का पेड़

सुबह अखबारों के

ताज़ा समाचारों में
रात की बासी
यादों के साथ
बोझिल आँखें लिये
जब कोई शहरिया
पढ़ता है गूंगी वारदातों की भाषा

हड़ताल

आगज़नी और
कर्फ्यू का आतंक लिये
जब कोई दफ्तरी
चलती हुई लोकल बस में
थाम लेता है रेलिंग

ब्याह योग्य गरीब लड़की

ससुराल के भय से
नहीं कर पाती रजो-दर्शन
भैया को डिग्री-डिप्लोमा करने
और रोज़-रोज़
जूते घिसाने के बाद भी
जब नहीं मिलती नौकरी
तब घर के गमले में
किसी बौने वृक्ष सा
उग आता है
अंजीर का पेड़
हड़ताल हो या हो अकाल
सन्नाटा हो या हो भूँचाल
कभी नहीं गिरता
यह अंजीर का पेड़

आग में जलकर

जब बस्तियां होती हैं राख
अधजली कुरूप् झुग्गियों से
उठती है धूल-ख़ाक
तब जले ढूहों से
चमकती रेशमी चाँदनी में
किसी खानाबदोश आँखों में
उभर आता है
अंजीर का पेड़
तपती हुई रातों को
कभी-कभी प्रतिशेाध में
खेत के मचान पर
हवा में गोलियां दागता है
अंजीर का पेड़

दिल में दुख-सा

सपने के सुख-सा
पेट में भूख़-सा
उगता है अंजीर का पेड़
कौन इसे ख़ाता है
किस को यह भाता है
समय अब हुआ है
अंजीर का फल
खाता है तो
खाता है ग़रीब
जिसके है यह
बहुत-बहुत क़रीब
औरों के लिए यह बना है
आध्यात्मिक
सूक्ष्म
पुराण का अश्वत्थ
  ( देश में आतंकवाद की शुरूआत का एक पूर्वापर अनुभव)

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