घाटी को ऊँचाइयों से देखो
वह लगेगी विस्तृत और उज्ज्वल
धुन्ध बना देती है इसे अपारदर्शी
और रहस्यमय
पास के मन्दिर में बजती हैं 
डिंगलिंग करती 
एक के बाद एक 
अनेक घण्टियाँ
चीनी मठ की तरह है इसकी छत
तिकोनी, स्लेट पत्थरों से निर्मित
अद्रघ-गोल-सा परिवेश है यह
शिखर है एक अनुपम
जहाँ से दिखायी दे रही
घाटी की परिक्रमा
जिस पर सहसा घूमने लगती है
चकराकर आँख
नीचे, बहुत नीचे 
पर्वत के मूल में
एक ओर
ढलान को चीरती
जिह्वा सी खिंची है
रेल की समानान्तर पटरियाँ
मन्द-मन्द चलतीं जिन पर
खिलौना गाड़ियाँ सुबहो-शाम
पूरी एक सदी गुज़र  गयी है 
घाटी के आसपास से
कि पता भी नहीं चला
कि कब छिन गये 
राजाओं के राजपाट
और कब अस्त हुआ
फिरंगी साम्राज्य का सूर्य
बदल गया है आसपास 
बदल गया है राजपाट
बदल गये हैं 
मौसम के तेवर भी
पर वे डिब्बीनुमा सर्पिल 
अब भी नाप रहीं
एक सौ तीन सुरंगों की
रोमांचक दूरियाँ
शिवालिक पहाड़ियों की
सौम्य ऊँचाइयाँ 
वनवीथियों
ग्रामपदों
और ढलानों के साथ
यह है तारा देवी 
जहाँ से देख रहा मैं
गहराई में नीचे धँसी
और ढलानों पर ऊपर उठती
परिक्रमामय यह सुन्दर घाटी
मौसम जहाँ आते हैं 
अपने अलग-अलग रंग 
और आभाभेदों के साथ
गाड़ते धर्म महोत्सवों में
शिखर पर झण्डियाँ। 
 
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